धीरे-धीरे शाम ढलेगी जिन्दगी भी उसी तरह खुद को सिमेट लेगी धीरे-धीरे शाम ढलेगी जिन्दगी भी उसी तरह खुद को सिमेट लेगी
न नेता हूँ न सेवक हूँ न ही उपकारी हूँ न नेता हूँ न सेवक हूँ न ही उपकारी हूँ
क्योंकि किसी को भुल जाना ईतना आसान नही होता। क्योंकि किसी को भुल जाना ईतना आसान नही होता।
ना जाने कब से इन रुढ़िवादी बे बुनियादी परंपराओं में खुद मिट जा रहे हैं कितने युवा ना जाने कब से इन रुढ़िवादी बे बुनियादी परंपराओं में खुद मिट जा रहे हैं कितने य...
तो जन्म लेने का प्रयास क्यों? मानवता होकर मानवता से होता है खिलवाड़ क्यों? तो जन्म लेने का प्रयास क्यों? मानवता होकर मानवता से होता है खिलवाड़ क्यों...
अब मुक्त हो चुका था आपने आप को प्रभु को सौंप चुका था न यहाँ रुकने का मन था न वापस जाने की इ... अब मुक्त हो चुका था आपने आप को प्रभु को सौंप चुका था न यहाँ रुकने का मन था...